Wednesday, 12 September 2018

निबंध के कुछ विषय

विषय –
१)एक साहसिक- रोमांचक यात्रा
२)ढाबा –भोजन – ‘स्ट्रीट फूड’ का अनुभव
३)किसी सांस्कृतिक धरोहर –कल्चरल हेरिटेज – का वर्णन
४)विज्ञान –गल्प –साइंस – फ़िक्शन
५)बाल -अपराधी –जुवेनाइल क्रिमिनल की समस्या
६)प्रिय ग्राफिक उपन्यास
७)परिवार में सबसे वृद्ध संबंधी से बात-चीत
८)किसी कलात्मक रचना कर्म –क्रिएटिव एक्टिविटी –नाटक ,संगीत ,पेंटिंग ,शिल्प –कला ,छायांकन में आदि में भाग लेने का आनंद
९)पड़ोसी देश के साथ हुए क्रिकेट मैच का संस्मरण
१०)प्रिय विज्ञापन
११)फेस बुक पर मित्रता -कितनी सार्थकता ?
१२)चाँद के साथ कुछ गप्पें
१३)भूख का अनुभव
१४)बुलिंग- उत्पीड़न- समस्या और समाधान
१५)शापिंग मॉल का आकर्षण
१६)नई फिल्में –बदलती प्रवृतियाँ – लंच बॉक्स से क्वीन तक
१७)मिथक – माइथोलॉजी का महत्त्व
१८)रचनात्मक कार्यों –क्रिएटिव वर्क्स पर प्रतिबन्ध – सेंसरशिप का औचित्य
१९)लालच बुरी बला नहीं बल्कि प्रेरणा है |’’ सहमति –असहमति में तर्क दीजिए |

२०)भारत की भविष्य की राजनीति 

उदय का क्षण

कल की तरह आज भी सूरज निकलेगा ,
होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामयी
जो भाग्यवान हैं उनकी आँखें सींचेंगी
उनकी आभा में शीतल किरणें मृत्युंजयी
कल –बीता हुआ कल ,प्रदक्षिणा –चक्कर लगाना ,नभ -आकाश ,पथ-रास्ता ,प्रभामयी –आलोकित ,भाग्यवान ,खुशकिस्मत ,सींचेंगी-तार रकेंगी ,आभा सुंदरता ,शीतल –ठंडी ,किरणें -रश्मियाँ ,मृत्युंजयी –मृत्यु को जीतने वाली
कवि व्यक्ति के निराश मन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मन !तू आश्मान पर छाये हुए अंधकार को देखकर मत दुखी मत हो |यह अंधकार जो दुःख और निराशा का प्रतीक है अस्थायी है अर्थात थोड़े समय के लिए ही है |कल की तरह आज फिर सूर्योदय होगा |उदय का क्षण आने ही वाला है |अंधकार जब बहुत गहरा हो जाए तो यह समझना चाहिए कि जल्द ही अब उसको मिटना होगा ,उसका अंत होना निश्चित ही है क्योंकि उसका कुछ समय के पश्चात आकाश मार्ग पर सूर्य की किरणें प्रदक्षिणा करेंगी ,प्रकाश से परिपूर्ण किरणें पूरे आसमान  पर छा जायेंगी |सूर्योदय की सराहना केवल भाग्यशाली ही कर सकेंगे |उनकी आँखे ही सूर्या की ज्योति से प्रभावित हो सकेंगी |सूर्य की आभा दिव्यता प्रदान करने वाली है |प्रातःकालीन किरणें की शीतलता में मृत्यु पर बी विजय पाने की शक्ति है |
जब शाम झुरेगी ,अंधियारा घिर आएगा
तब दिन में खींची हुई किरण चन्दा बन कर ,
बिछ जायेगी उनकी शैया  पर चुपके से
पूरब की गोदी से छनकर |
शाम –संध्या, झुरेगी- धीरे धीरे घिरेगी ,अंधियारा अंधकार ,घिर आना –फैल  जाना  ,चन्दा चन्द्रमा ,शैया –पलंग ,चुपके से –बिना कुछ कहे ,वातायन –खिडकी

जब सान्झ अँधेरे में बदलेगी और सर्वत्र अंधकार छा जाएगा तब दिन में फैली हुई रवि की किरणें चंद्र किरणों का रूप ले लेंगी |ये चंद्र किरणें भी पूर्वा से निकलेंगी और चुपके से (शांत भाव से )जनमानस की सेज पर बिछ जायेंगी |यह चांदनी सभी को शीतलता प्रदान करेगी |तथा समस्त संसार नींद में डूब जाएगा |
हम भले न समझे उदय अस्त का अर्थ मगर ,
हर दिन प्रभात में सृष्टि सहज हँस पड़ती है ,
हर सांझ स्निग्ध आश्वास –मरन  आलस देकर
स्फूर्ति सवेरे तक जीवन की मढ़ती है |

उदय होना –उगना ,अस्त होना –डूबना ,प्रभात –सुबह ,सृष्टि –संसार ,सहज –सरल ,सांझ –शाम ,स्निग्ध –कोमल ,आश्वास –साँसों का आना -जाना ,मरण –मृत्यु ,आलस –सुस्ती ,स्फूर्ति –ताजगी ,मढ़ना आवरणबद्ध करना
हमें पता चले या न चले ,पर सूर्योदय  होते ही पूरी सृष्टि मानो प्रसन्न होकर हँसने लगती है |प्रातः काल जीवन में एक मधुर मुस्कान तथा स्फूर्ति लेकर आता है |शाम होते होते आलस्य छा जाता है तथा शरीर निढाल हो जाता है |अगर सूर्य अस्त न हो तो उसके उदय की महत्ता कैसे जानी जा सकेगी ?अगर अंधकार न हो तो प्रकाश का मूल्य आँकना मुश्किल हो जाएगा |प्रातः से सांझ तक ,स्फूर्ति से आलस्य तक का नियम जीवन को सहज बनाता रहता है |यही प्रकृति का नियम है |
हर परिवर्तन से प्राण शक्ति ले सकते हैं
हर शक्ति स्नेह के चरणों पर चढ़ क्यों न जाय
इसलिए उदय का क्षण जो आने वाला है
पंछी उसमें उल्लास ,गीत यदि नहीं गाय
तो धरती से नभ तक की सारी सृष्टि व्यर्थ
तो नभ से धरती तक का वातावरण लाज ,
तुम उदयकाल में मौन नहीं रह जाना मन
कल के जैसा निकलेगा सूरज अभी आज |
परिवर्तन –बदलाव, शक्ति –ताकत ,स्नेह –प्रेम,चरण -पैर ,क्षण पल ,पंछी –पक्षी ,उल्लास आनंद ,गीत गान ,गाय –गाना ,वातावरण –माहौल ,मौन खामोश ,काल समय

कवि कहते हैं कि प्रकृति में नियमित रूप से होने वाले परिवर्तनों से जीने की प्रेरणा मिलती है और प्राणों को शक्ति मिलती है |आनेवाले सूर्योदय के समय यदि पक्षी अपनी प्रसन्नता के गीत न गायें तो धरती से आकाश तक इस पूरे संसार का  अस्तित्व बेकार है और आकाश से धरती तक का समस्त वातावरण स्वयं को लज्जित अनुभव करेगा |पक्षियों की चहचहाहट ही प्रभात के आगमन का सन्देश देती है |रात्रि की प्रतीक्षा भी मनोहारी ही है क्योंकि वह सुभाह में परिवर्तित होगी और उदय की वह बेला हमारे प्राणों को और अधिक शक्तिशाली बनाएगी |अतः कवि मानव मन को संबोधित काटे हुए कहते हैं कि हे मानव मन ,तुम निराश रहित होकर सूर्योदय की प्रतीक्षा करना तथा सूर्योदय होने पर अपनी प्रसन्नता अवश्य व्यक्त करना |कल की ही भांति आज भी सूर्य उदय होगा और हमारे जीवन में नयी स्फूर्ति का संचार करेगा |

स्वदेश प्रेम

स्वदेश प्रेम
अतुलनीय जिनके प्रताप का , साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकार |
घूम घूम कर देख चुका है जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर |
देख चुके हैं जिनका वैभव ,ये नभ के अनंत तारागण|
अगणित बार सुन चुका है नभ
जिनका विजय- घोष रण गर्जन  |
कवि ने इन पंक्तियों में भारतवर्ष के यशस्वी पूर्वजों का वर्णन किया है |कवि कहता है कि भारतवर्ष के पूर्वजों का अनोखा प्रताप था |सूर्य इस बात का प्रत्यक्ष गवाह है |उनकी कीर्ति चन्द्रमा घूमते हुए और चक्कर लगाते हुए देख चुका है |उनकी सम्पति और ऐश्वर्य को आकाश में विचरण करने वाले असंख्य तारे देख चुके हैं अर्थात आकाश के असंख्य तारे देख चुके हैं कि भारतीय कितने वैभव संपन्न थे |यह आकाश भी हमारे प्रतापी पूर्वजों की विजय घोषणा और युद्ध की आवाज़ कई बार सुन चुका है |
प्रश्न – कवि ने किसकी कीर्ति और वैभव का वर्णन किया है ?
प्रश्न –कवि द्वारा किये गए वर्णन का उद्देश्य क्या है ?
शब्दार्थ लिखो – अतुलनीय –जिसकी तुलना न हो ,प्रताप –तेज ,कीर्ति -यश ,साक्षी –गवाह ,दिवाकर –सूर्य ,निशाकर –चाँद ,वैभव – धन- संपत्ति ,विजय -घोष -- जयकार ,रण- गर्जन –युद्ध की ध्वनियाँ

शोभितहै सर्वोच्चमुकुट-ताज  से ,
जिनके दिव्यदेश का मस्तक |
गूँज रहीं हैं सकल दिशाएँ,
जिनके जय गीतों से अब तक |
जिनकी महिमा का है अविरल,साक्षी सत्य -रूप हिम गिरिवर |
उतराकरते थे विमान दल
जिसके विस्तृत वक्ष स्थल पर |
प्रस्तुत पंक्तियाँ राम नरेश त्रिपाठी द्वारा रचित खंडकाव्य ‘स्वप्न’ का अंश है |इस काव्य में नायिका ‘सुमना’देश के लिए त्याग और बलिदान करने के लिए भारत के नवयुवकों को प्रेरित करती है |इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम वो गौरवशाली भारतीय हैं जिनके अलौकिक देश के माथे पर संसार का सबसे ऊँचा हिमालय पर्वत मुकुट के सामान सुशोभित है |उन महान पूर्वजों की महान विजय गीतों से आज भी सारी दिशाएँ गूँज रही हैं |उन महान पूर्वजों की वीरता की कहानियां आज भी अमर हैं और इसका गवाह हिमालय पर्वत है |प्राचीन काल से ही हमारा देश विज्ञान के क्षेत्र में उन्नतशील रहा है |क्योंकि इसी देश के विशाल भूमि के लंबे चौड़े भू भाग पर विमानों के दल उतरा करते थे|
शोभित-शोभा दे रहा है है ,सर्वोच्च -सबसे ऊंचा , मुकुट-ताज,  से ,  दिव्य-अलौकिक (divine )
अविरललगातार , हिम गिरिवर –हिमालय , विस्तृत –विशाल ,वक्ष स्थल–छाती

प्रश्न – किनकी महिमा का और किस प्रकार वर्णन किया गया है ?
प्रश्न –‘उतरा करते थे विमान दल ‘से कवि ने क्या स्पष्ट किया है ?
प्रश्न –उक्त गौरव गान का क्या उद्देश्य है ?
सागर निज छाती पर जिनके,
 अगणित अर्णव पोत उठाकर
पहुंचाया करता था प्रमुदित (प्रसन्नतापूर्वक),
भूमंडल के सकल तटों पर |
नदियां जिनकी यश धारा सी ,
बहती हैं अब भी निशि वासर |
ढूंढों ,उनके चरण चिह्न भी ,
पाओगे तुम इनके तट पर |
कवि ने यहाँ पर भारत की सम्पन्नता का वर्णन  किया है |कवि कहता है कि हम तो उस भारत देश के निवासी हैं जहां पर अगणित समुद्री ज़हाजों को समुद्र अपनी छाती पर प्रसन्नतापूर्वक दूसरे देशों तक पहुँचाता था |भारतीयों की यश गाथा यहाँ की नदियाँ गाती हैं |आज भी हमारे पूर्वजों के पैरों के निशान नदियों के तटों पर मिल जायेंगे |अर्थात हमारे पूर्वजों ने नदियों के तटों पर मंदिर ,धर्मशालाएं बनवाईं थी |
प्रश्न –किसका अतीत चित्रित किया गया है और क्यों ?
प्रश्न –किनके चरण चिह्नों को ढूढने के लिए कहा गया है और क्यों ?
प्रश्न –शब्दार्थ लिखें –अगणित –असंख्य ,अर्णव- पोत- पानी का जहाज,प्रमुदित –प्रसन्न ,भूमंडल –पृथ्वी ,सकल –सारा ,निशि -वासर –रात -दिन ,चरण चिह्न –पैरों के निशान


विषुवत रेखा का वासी जो ,
जीता है नित हांफ हांफ कर |
रखता है अनुराग अलौकिक ,
वह भी अपनी मातृभूमि  पर
ध्रुववासी ,जो हिम में ,तम में
जी लेता है काँप काँप कर,
 वह भी अपनी मातृभूमि पर ,
कर देता है प्राण निछावर |

कवि कहता है कि भूमध्य रेखा के निकटवर्ती स्थानों पर बहुत गर्मी रहती है वहाँ के निवासी अत्यधिक  गर्मी के कारण हांफ हांफ कर जीवन यापन करते हैं फिर भी उन्हें अपनी मातृभूमि से अलुकिक प्रेम होता है | इसी प्रकार ध्रुवप्रदेशों के लोगों को अधिक सर्दी का सामना करना पड़ता है फिर भी मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम कम नहीं होता |मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं |
प्रश्न १) विषुवत रेखा का वासी हाँफ- हाँफ कर क्यों जीता है तथा ध्रुववासी काँप कर क्यों जीता है ?
२)मातृभूमि से वहाँ के के निवासी का इतना गहरा प्रेम क्यों होता है
 ३)इस पद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है ?


तुम तो ,हे प्रिय बंधु स्वर्ग सी ,
सुखद , सकल विभावों (ऐश्वर्य) की आकर (भण्डार)|
धारा शिरोमणि मातृभूमि में ,
धन्य हुए हो जीवन पाकर |
तुम जिसका अन्न जल ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसकी रज|
तन रहते कैसे तज दोगे ,उसको , हे वीरो के वंशज |
कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में देश के नवयुवकों को संबोधित करते करते हुए कहते हैं कि हे भारत देश के नवयुवकों ! तुम तो बहुत भाग्य शाली हो कि स्वर्ग के सामान सुख देने वाले और वैभव के भण्डार भारत देश में पैदा हुए हो |तुमने ऐसे देश में जन्म लिया है जो पृथ्वी पर श्रेष्ठतम  है|तुम भारत देश का ही अन्न जल लेकर पले-बढे हो तुम इसी देश की मिट्टी में खेल कूद कर बड़े हुए हो इसलिए ऐसी पवित्र मातृभूमि  को जीते जी कैसे छोड़ सकते हो |

जब तक साथ एक भी दम हो
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन|
रखो आत्म गौरव से ऊंची ,
पलकें ,ऊँचा सर ,ऊँचा मन |
एक बूँद भी रक्त शेष हो ,
जब तक तन में हे शत्रुंजय
दीन  वचन मुख से न उचारो ,
मानो नहीं मृत्यु का भय  |

कवि ने भारतीय नवयुवकों को स्वाभिमानी बनाने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि हे नवयुवकों ! जब तक तुम्हारे शरीर में एक भी सांस है ,दिल में एक भी धड़कन शेष है तब तक स्वाभिमान से अपनी पलकें ऊँची रखना |सिर तथा मन को भी ऊँचा रखना |शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले हे वीरों |जब तक तुम्हारे शरीर में खून की एक भी बूँद बाकी है दीन  वचन मुख से न निकालना |मृत्यु से भी न डरो |
कवि किन लोगों को क्या उपदेश दे रहा है और क्यों ?
‘शत्रुंजय’विशेषण कवि ने किसे दिया है और क्यों ?
शब्दार्थ लिखो – अवशिष्ट –शेष /बचा हुआ
आत्म गौरव –आत्म सम्मान
रक्त –खून
शत्रुंजय –शत्रु को जीतनेवाला
उचारो –बोलो
भय- डर
निर्भय स्वागत करो मृत्यु का ,
मृत्यु एक है विश्राम -स्थल |
जीव जहां से फिर चलता है ,
धारण कर नव जीवन -संबल |
मृत्यु एक सरिता है ,जिसमें
श्रम से कातर जीव नहाकर |
फिर नूतन धारण करता है ,
काया रूपी वस्त्र बहाकर |
कवि कहते हैं कि हे भारत के नौजवानों तुम निडर होकर मौत का स्वागत करना क्योंकि मौत से
भयभीत होना व्यर्थ है |मौत तो एक विश्राम स्थल है जहां जीव कुछ समय के लिए विश्राम करता है और पुनः नवीन शरीर धारण कर अपनी यात्रा पर चल पड़ता है |मृत्यु को कवि ने एक सरिता की उपमा भी दी है |कवि के अनुसार मृत्यु तो एक नदी है जिसमें जीवन के श्रम से से थकी हुई  आत्मा स्नान करती है और अपना शरीर रूपी वस्त्र  पानी में बहाकर  नया शरीर धारण कर लेती है |
मौत का स्वागत निर्भय होकर क्यों करना चाहिए ?कविता के सन्दर्भ में समझाइये ?
मृत्यु एक विश्राम स्थल है’का क्या अभिप्राय है ?
मृत्यु एक सरिता है’ -कहकर कवि ने क्या सन्देश दिया है ?
शब्दार्थ लिखो –
निर्भय –निडर ,संबल –सहारा ,सरिता –नदी ,श्रम –परिश्रम ,कातर भयभीत ,नूतन नया ,काया -रूपी शरीर रूपी ,वस्त्र –कपड़े
सच्चा प्रेम वही है जिसकी
तृप्ति आत्म बलि पर हो निर्भर |
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है ,
करो प्रेम पर प्राण निछावर |
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है ,
अमल असीम त्याग से विलसित |
आत्मा के विकास से जिसमें ,
मनुष्यता होती है विकसित |रामनरेश त्रिपाठी
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सच्चे प्रेम के लिए त्याग को महत्त्वपूर्ण बताया है |कवि के अनुसार सच्चा प्रेम तो आत्म बलिदान की भावना से परिपूर्ण होता है,त्याग के बिना तो प्रेम निष्प्राण है इस प्रकार प्रेम पर हँसते- हँसते प्राण न्यौछावर कर देना चाहिए |देश प्रेम एक पवित्र भावना है जो स्वच्छ ,निर्मल तथा असीम त्याग से सुशोभित होती है |आत्मा के विकास के साथ मनुष्य में उदारता ,क्षमा ,सहनशीलता जैसे मानवीय गुणों का भी विकास होता है अर्थात जब मनुष्य में देश प्रेम का विकास होता है ,उसमें स्वतः ही मनुष्यता का भी विकास हो जाता है |
देश-प्रेम क्या है ?कविता के सन्दर्भ में बताइये 
उपर्युक्त पद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है ?
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तुम तो ,हे प्रिय बंधु स्वर्ग सी ,
सुखद , सकल विभावों (ऐश्वर्य) की आकर (भण्डार)|
धारा शिरोमणि मातृभूमि में ,
धन्य हुए हो जीवन पाकर |
तुम जिसका अन्न जल ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसकी रज|
तन रहते कैसे तज दोगे ,उसको , हे वीरो के वंशज |(ICSE 2011)
        I.            हमारा जीवन धन्य क्यों है ? समझाकर लिखें |
हमारा जीवन धन्य इसलिए है क्योंकि हने विश्व की सर्वश्रेष्ठ धरती पर जन्म लिया है |ऐसी भारतभूमि पर जन्म लिया है जो समस्त सुखों को देनेवाली है तथा ऐश्वर्य की भण्डार है,जहाँ जन्म लेने की कामना सदा देवता भी करते हैं |यह धरती स्वर्ग तुल्य है तथा धनधान्य से संपन्न है |
      II.            मातृभूमि के हम पर क्या -क्या उपकार हैं ?
मातृभूमि हम पर कई उपकार करती है |हम इसी की गोद में जन्म लेते हैं ,इसी की रज(धूल) में खेलकर बड़े होते हैं ,इसी की मिट्टी में उगे फल ,अनाज को खाकर ,इसके जल को पीकर फलते फूलते हैं ,अपने जीवन को सुरक्षित रखते हैं ,हृष्ट –पुष्ट होते हैं |यह हमें अपनी गोद में संरक्षण देती है |
    III.            कवि ने हमें वीरों के वंशज क्यों कहा है ?स्वदेश –प्रेम का हमारे लिए क्या महत्त्व है ?
कवि ने हमें वीरों के वंशज इसलिए कहा है क्योंकि भारत की धरती को ‘वीर प्रसवा’ कहा जाता है |यहाँ शिवाजी ,राणा प्रताप ,भगत सिंह जैसे वीरों ने जन्म लिया था |
स्वदेश –प्रेम से आत्मा को संतोष प्राप्त होता है| हमारे अन्दर उदात्त प्रेम एवं त्याग की भावना विकसित होती है |स्वदेश प्रेम ही देश की अखण्डता और समरसता को बनाए रखने का आधार है |स्वदेश प्रेम हमें उच्च आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देता है |
    IV.            निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए –
सुखद ,विभव ,शिरोमणि ,सकल ,आकर ,रज
सुखद –सुख देनेवाली
विभव –वैभव ,ऐश्वर्य ,संपदा ,धन दौलत ,सम्पन्नता
शिरोमणि –सिरताज ,सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठ ,चूड़ामणि
सकल –समस्त ,सारा ,सम्पूर्ण
आकर –खान ,खजाना ,भण्डार
रज -धूल,धूलि ,गर्द ,रेणु,मिट्टी