Wednesday, 12 September 2018

उदय का क्षण

कल की तरह आज भी सूरज निकलेगा ,
होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामयी
जो भाग्यवान हैं उनकी आँखें सींचेंगी
उनकी आभा में शीतल किरणें मृत्युंजयी
कल –बीता हुआ कल ,प्रदक्षिणा –चक्कर लगाना ,नभ -आकाश ,पथ-रास्ता ,प्रभामयी –आलोकित ,भाग्यवान ,खुशकिस्मत ,सींचेंगी-तार रकेंगी ,आभा सुंदरता ,शीतल –ठंडी ,किरणें -रश्मियाँ ,मृत्युंजयी –मृत्यु को जीतने वाली
कवि व्यक्ति के निराश मन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मन !तू आश्मान पर छाये हुए अंधकार को देखकर मत दुखी मत हो |यह अंधकार जो दुःख और निराशा का प्रतीक है अस्थायी है अर्थात थोड़े समय के लिए ही है |कल की तरह आज फिर सूर्योदय होगा |उदय का क्षण आने ही वाला है |अंधकार जब बहुत गहरा हो जाए तो यह समझना चाहिए कि जल्द ही अब उसको मिटना होगा ,उसका अंत होना निश्चित ही है क्योंकि उसका कुछ समय के पश्चात आकाश मार्ग पर सूर्य की किरणें प्रदक्षिणा करेंगी ,प्रकाश से परिपूर्ण किरणें पूरे आसमान  पर छा जायेंगी |सूर्योदय की सराहना केवल भाग्यशाली ही कर सकेंगे |उनकी आँखे ही सूर्या की ज्योति से प्रभावित हो सकेंगी |सूर्य की आभा दिव्यता प्रदान करने वाली है |प्रातःकालीन किरणें की शीतलता में मृत्यु पर बी विजय पाने की शक्ति है |
जब शाम झुरेगी ,अंधियारा घिर आएगा
तब दिन में खींची हुई किरण चन्दा बन कर ,
बिछ जायेगी उनकी शैया  पर चुपके से
पूरब की गोदी से छनकर |
शाम –संध्या, झुरेगी- धीरे धीरे घिरेगी ,अंधियारा अंधकार ,घिर आना –फैल  जाना  ,चन्दा चन्द्रमा ,शैया –पलंग ,चुपके से –बिना कुछ कहे ,वातायन –खिडकी

जब सान्झ अँधेरे में बदलेगी और सर्वत्र अंधकार छा जाएगा तब दिन में फैली हुई रवि की किरणें चंद्र किरणों का रूप ले लेंगी |ये चंद्र किरणें भी पूर्वा से निकलेंगी और चुपके से (शांत भाव से )जनमानस की सेज पर बिछ जायेंगी |यह चांदनी सभी को शीतलता प्रदान करेगी |तथा समस्त संसार नींद में डूब जाएगा |
हम भले न समझे उदय अस्त का अर्थ मगर ,
हर दिन प्रभात में सृष्टि सहज हँस पड़ती है ,
हर सांझ स्निग्ध आश्वास –मरन  आलस देकर
स्फूर्ति सवेरे तक जीवन की मढ़ती है |

उदय होना –उगना ,अस्त होना –डूबना ,प्रभात –सुबह ,सृष्टि –संसार ,सहज –सरल ,सांझ –शाम ,स्निग्ध –कोमल ,आश्वास –साँसों का आना -जाना ,मरण –मृत्यु ,आलस –सुस्ती ,स्फूर्ति –ताजगी ,मढ़ना आवरणबद्ध करना
हमें पता चले या न चले ,पर सूर्योदय  होते ही पूरी सृष्टि मानो प्रसन्न होकर हँसने लगती है |प्रातः काल जीवन में एक मधुर मुस्कान तथा स्फूर्ति लेकर आता है |शाम होते होते आलस्य छा जाता है तथा शरीर निढाल हो जाता है |अगर सूर्य अस्त न हो तो उसके उदय की महत्ता कैसे जानी जा सकेगी ?अगर अंधकार न हो तो प्रकाश का मूल्य आँकना मुश्किल हो जाएगा |प्रातः से सांझ तक ,स्फूर्ति से आलस्य तक का नियम जीवन को सहज बनाता रहता है |यही प्रकृति का नियम है |
हर परिवर्तन से प्राण शक्ति ले सकते हैं
हर शक्ति स्नेह के चरणों पर चढ़ क्यों न जाय
इसलिए उदय का क्षण जो आने वाला है
पंछी उसमें उल्लास ,गीत यदि नहीं गाय
तो धरती से नभ तक की सारी सृष्टि व्यर्थ
तो नभ से धरती तक का वातावरण लाज ,
तुम उदयकाल में मौन नहीं रह जाना मन
कल के जैसा निकलेगा सूरज अभी आज |
परिवर्तन –बदलाव, शक्ति –ताकत ,स्नेह –प्रेम,चरण -पैर ,क्षण पल ,पंछी –पक्षी ,उल्लास आनंद ,गीत गान ,गाय –गाना ,वातावरण –माहौल ,मौन खामोश ,काल समय

कवि कहते हैं कि प्रकृति में नियमित रूप से होने वाले परिवर्तनों से जीने की प्रेरणा मिलती है और प्राणों को शक्ति मिलती है |आनेवाले सूर्योदय के समय यदि पक्षी अपनी प्रसन्नता के गीत न गायें तो धरती से आकाश तक इस पूरे संसार का  अस्तित्व बेकार है और आकाश से धरती तक का समस्त वातावरण स्वयं को लज्जित अनुभव करेगा |पक्षियों की चहचहाहट ही प्रभात के आगमन का सन्देश देती है |रात्रि की प्रतीक्षा भी मनोहारी ही है क्योंकि वह सुभाह में परिवर्तित होगी और उदय की वह बेला हमारे प्राणों को और अधिक शक्तिशाली बनाएगी |अतः कवि मानव मन को संबोधित काटे हुए कहते हैं कि हे मानव मन ,तुम निराश रहित होकर सूर्योदय की प्रतीक्षा करना तथा सूर्योदय होने पर अपनी प्रसन्नता अवश्य व्यक्त करना |कल की ही भांति आज भी सूर्य उदय होगा और हमारे जीवन में नयी स्फूर्ति का संचार करेगा |

No comments:

Post a Comment